भारत की प्राचीन भूमि पर फैली हुई अरावली पर्वत श्रृंखला केवल एक भौगोलिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। लगभग 700 किलोमीटर लंबी यह पर्वतमाला राजस्थान से लेकर हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक फैली हुई है। इसे दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में गिना जाता है। परंतु अरावली का महत्व केवल प्राकृतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि धार्मिक और पौराणिक घटनाओं से भी जुड़ा है, जिसने इसे भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना दिया।
पौराणिक कथाओं से जुड़ा अरावलीहिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में अरावली पर्वत श्रृंखला का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। कहा जाता है कि यह पर्वतमाला भगवान शिव और देवी पार्वती के तप स्थल के रूप में जानी जाती है। कुछ किंवदंतियों के अनुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अरावली की पहाड़ियों में समय बिताया था। यहीं उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए और ध्यान-भक्ति में लीन होकर शक्ति प्राप्त की।इसके अलावा, महाभारत काल में भी अरावली का नाम सामने आता है। कुछ कथाओं के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले कई ऋषियों और संतों ने अरावली पर्वत पर तपस्या कर पांडवों को आशीर्वाद दिया था। यही कारण है कि आज भी इस पर्वत श्रृंखला को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है।
शिव और शक्ति की उपासना का केंद्रअरावली के कई हिस्सों में प्राचीन शिव मंदिर और शक्ति पीठ स्थित हैं। राजस्थान के अम्बाजी मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर और एकलिंगजी का मंदिर अरावली पर्वतमाला की गोद में बसे हुए हैं। ये मंदिर न केवल स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र हैं, बल्कि देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी महत्वपूर्ण तीर्थ बन चुके हैं।एकलिंगजी मंदिर, जो उदयपुर के पास स्थित है, को मेवाड़ राजवंश का इष्ट देव माना जाता है। कहा जाता है कि मेवाड़ के राजाओं ने इसी मंदिर में भगवान शिव की पूजा कर शक्ति और साहस प्राप्त किया। इसी प्रकार अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है और इसे शक्ति पीठों में गिना जाता है। माना जाता है कि यहाँ देवी सती का हृदय गिरा था।
जैन धर्म और अरावलीअरावली पर्वत श्रृंखला का महत्व केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जैन धर्म के लिए भी पवित्र है। अरावली की गोद में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर (माउंट आबू) अपनी अनोखी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है। 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच बने ये मंदिर जैन संस्कृति की महानता को दर्शाते हैं।माउंट आबू, जो अरावली की ऊँचाइयों पर बसा है, जैनियों के लिए सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए आते हैं।
तप और साधना की भूमिअरावली पर्वत श्रृंखला का वातावरण और यहाँ की प्राकृतिक शांति साधना और ध्यान के लिए अनुकूल मानी जाती है। प्राचीन समय से लेकर आज तक, संत-महात्मा और साधक इस पर्वत श्रृंखला की गुफाओं और वनों में तपस्या करते रहे हैं। माना जाता है कि यहाँ की प्राकृतिक ऊर्जा मन और आत्मा को शुद्ध करने वाली है।
धार्मिक मेलों और परंपराओं का केंद्रअरावली क्षेत्र में समय-समय पर बड़े धार्मिक मेले और उत्सव भी आयोजित होते हैं। अम्बाजी मेले, नक्की झील के किनारे होने वाले उत्सव और एकलिंगजी की आराधना यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। इन आयोजनों में न केवल राजस्थान बल्कि देशभर से लाखों लोग शामिल होते हैं।
आज का महत्वआज भले ही अरावली पर्वत श्रृंखला को पर्यावरण संरक्षण और खनन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी उतना ही गहरा है। यहाँ के मंदिर, पौराणिक स्थल और धार्मिक कथाएँ लोगों की आस्था को मजबूत करती हैं।
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