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आपके फेफड़े कितने सेहतमंद हैं, इन तरीकों से घर बैठे ही लग जाएगा पता

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आपके फेफड़े आपकी सेहत के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं. राहत की बात ये है कि अपने फेफड़ों को हम बेहतर स्थिति में भी ला सकते हैं.

आपकी हर सांस के साथ फेफड़े प्रदूषकों, सूक्ष्मजीवों, धूल और एलर्जन्स (एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ) के संपर्क में आते हैं.

ज़ाहिर सी बात है कि इससे फेफड़ों पर असर पड़ता है और उनकी उम्र तेज़ी से बढ़ सकती है. लेकिन फेफड़े सिर्फ़ खुद नहीं, बल्कि पूरे शरीर की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकते हैं.

मई 2025 में, रेस्पिरेटरी एक्सपर्ट्स की एक इंटरनेशनल टीम ने बढ़ती उम्र के साथ-साथ फेफड़ों के काम करने में आने वाले बदलावों पर एक स्टडी प्रकाशित की.

20वीं सदी के दौरान क़रीब 30 हज़ार पुरुषों और महिलाओं से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर, यह पता चला कि हमारे फेफड़े 20 साल की उम्र से लेकर क़रीब 25 साल की उम्र तक सबसे ज़्यादा सक्रिय होते हैं.

महिलाओं की फेफड़ों की क्षमता आमतौर पर पुरुषों की तुलना में कुछ साल पहले सबसे बेहतर होती है और उसके बाद धीरे-धीरे कम होने लगती है.

ऐसे करें जांच image Getty Images आपके फेफड़ों की क्षमता आपके स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ बता सकती है

बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फ़ॉर ग्लोबल हेल्थ की प्रोफे़सर और इस स्टडी की प्रमुख जूडिथ गार्सिया-एमेरिक के मुताबिक़, ये बढ़ती उम्र के साथ एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया लगती है.

वह कहती हैं, "धूम्रपान, वायु प्रदूषण और अस्थमा जैसी बीमारियाँ इसे और ख़राब कर सकती हैं. इस उम्र में (20 से 25 साल) आपके फेफड़ों की क्षमता जितनी बेहतर होगी, बाद में सांस से जुड़ी बीमारियों के प्रति आपकी प्रतिरोधक क्षमता उतनी ही अच्छी होगी.

तो आइए जानते हैं कि आपके फेफड़े कितने स्वस्थ हैं और क्या आप उन्हें बेहतर हालत में ला सकते हैं?

आप घर पर ही एक आसान तरीका अपनाकर अपने फेफड़ों की जांच कर सकते हैं. इसके लिए आपको चाहिए:

  • एक बड़ी प्लास्टिक की बोतल
  • एक बाल्टी या टब
  • एक रबड़ की नली

अब इसके लिए आगे की प्रक्रिया कुछ इस तरह की है:

  • एक प्लास्टिक की बोतल में 200 मिली लीटर पानी डालें और पानी के लेवल पर निशान लगा लें.
  • इसमें फिर से 200 एमएल पानी डालें और फिर से नए लेवल पर एक निशान लगा लें. ऐसा तब तक करें जब तक की बोतल भर न जाए.
  • अब आपने जो बाल्टी या टब लिया है उसे पानी से भरें और पूरी भरी हुई बोतल को उसमें उल्टा डुबो दें.
  • बोतल को इसी स्थिति में रखते हुए, रबड़ की नली को बोतल के मुंह में डालें. इस रबड़ का बोतल में कसकर फिट होना ज़रूरी नहीं है.
  • अब गहरी सांस लें और नली में फूंक मारें.
  • आप देखें कि फूंक मारकर बोतल से कितनी पानी की रेखाएं बाहर निकाल सकते हैं.
  • जितनी रेखाएं निकलीं, उन्हें 200ml से गुणा कर दें. (जैसे तीन रेखाएं = 600ml). यही आपकी फेफड़ों की फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी (एफवीसी) है.
  • यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट में एक्सरसाइज़ रेस्पिरेटरी क्लिनिक के प्रमुख जॉन डिकिन्सन कहते हैं, "यह परीक्षण उस हवा की मात्रा को देखता है जिसे आप बाहर निकाल सकते हैं. इसे वाइटल (लंग्स) कपैसिटी कहते हैं."

    "इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल 1840 के दशक में ब्रिटिश सर्जन जॉन हचिंसन ने किया था. उन्होंने देखा कि जो लोग कम मात्रा में हवा निकाल सकते थे, उनका आगे का जीवन छोटा होता था."

    अमेरिकन लंग एसोसिएशन के मुताबिक़ भले ही इंसान स्वस्थ हो और उसने कभी स्मोकिंग नहीं की हो लेकिन उम्र बढ़ने के साथ हर दस साल में एफ़वीसी क़रीब 0.2 लीटर घट सकती है.

    सामान्य रूप से एक स्वस्थ व्यक्ति की एफ़वीसी 3 से 5 लीटर के बीच होती है.

    जॉन डिकिन्सन कहते हैं कि अगर आपको घर पर किए गए इस परीक्षण में कम रीडिंग मिले तो ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.

    उनका कहना है, "बहुत से लोग अपने फेफड़ों को पूरी तरह खाली करने में कठिनाई महसूस करते हैं, जिससे रीडिंग कम आ सकती है."

    लेकिन अच्छी ख़बर यह है कि आप अपने फेफड़ों की सेहत को बेहतर बना सकते हैं उनके काम करने की क्षमता में आ रही कमी की रफ़्तार को धीमा कर सकते हैं. अगर आप बढ़ती उम्र के साथ स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो यह एक आपके लिए काफ़ी ज़रूरी हो सकता है.

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    फेफड़े पूरी सेहत पर कैसे असर डालते हैं? image Getty Images फेफड़े कितने स्वस्थ हैं, ये पता लगाने के लिए स्पाइरोमीटर अधिक सटीक तरीका है

    शोध से पता चलता है कि उम्र बढ़ने के साथ ही फेफड़ों के टिश्यूज़ ( ऊतकों) का लचीलापन कम हो जाता है, इससे सांस लेने के काम में आने वाली डायाफ्राम जैसी मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं.

    बढ़ती उम्र के साथ ही रिब केज (पसलियों का ढांचा) सख्त हो जाता है, जिससे उसके फैलने और सिकुड़ने की प्रक्रिया सीमित हो जाती है.

    गार्सिया-ऐमेरिक कहते हैं, "अगर फेफड़ों के काम करने की क्षमता में अत्यधिक गिरावट आती है, तो व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ़ जैसी परेशानियां हो सकती हैं. यह स्थिति क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) में बदल सकती है, जिसे फेफड़ों के कमज़ोर होने के तौर पर जाना जाता है."

    लेकिन फेफड़ों का बिगड़ता स्वास्थ्य सिर्फ़ सांस की बीमारियों तक सीमित नहीं है.

    यह हाई बल्ड प्रेशर, ऑटोइम्यून बीमारियां, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, कमज़ोरी और थकान के साथ ही दिमाग़ी क्षमता में गिरावट को दिखाता है.

    कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में उम्र बढ़ने और इम्यून सिस्टम की एक्सपर्ट प्रोफेसर डॉन बोडिश कहती हैं कि इसका एक कारण यह है कि फेफड़े दिल और ब्लड सर्कुलेशन से गहराई से जुड़े होते हैं, और साथ ही हमारे व्यापक इम्यून सिस्टम से भी इनका गहरा संबंध होता है.

    इसे वह "लंग-इम्यून एक्सिस" कहती हैं.

    वह कहती हैं, "फेफड़ों में लाखों-करोड़ों इम्यून सेल्स (कोशिकाएं) होती हैं, जिनका काम बहुत अहम होता है. जैसे कि वायु प्रदूषण के कणों को साफ करना, संक्रमण से लड़ना और सांस लेने की प्रक्रिया से होने वाले नुक़सान को ठीक करना."

    बोडिश के अनुसार, अगर फेफड़ों की इम्यून सेल्स उन सभी कणों को साफ नहीं कर पातीं जो फेफड़ों में जमा होते हैं, तो यह सूजन को बढ़ा सकती है, जिससे फेफड़ों में दाग पड़ सकते हैं, जिसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है. इससे फेफड़े कठोर हो जाते हैं और उनकी काम करने की क्षमता घट जाती है

    फेफड़ों में सूजन से यह भी हो सकता है कि हमारा शरीर सांस के ज़रिए होने वाले संक्रमणों पर अलग तरीके से प्रतिक्रिया देने लगे और कभी-कभी ऐसी प्रतिक्रिया भी नुक़सान पहुंचा सकती है.

    अपनी सांस की जांच करें image Getty Images फेफड़ों की क्षमता अमूमन एथलीटों की फिटनेस का पता लगाने के लिए जांची जाती है, मगर ये आने वाले समय में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का संकेत भी दे सकता है

    डिकिन्सन कहते हैं कि आप घर पर एक और परीक्षण कर सकते हैं, जो है- रेस्टिंग ब्रीदिंग फ्रीक्वेंसी को जांचना.

    इसका मतलब है कि आप कितनी देर तक सांस छोड़ सकते हैं, इससे पहले कि आपको फिर से सांस लेने की ज़रूरत पड़े.

    वह कहते हैं, "एक गहरी सांस लें और फिर सेकंड में गिनें कि आप कितनी देर तक धीरे-धीरे सांस बाहर छोड़ सकते हैं. आपमें कम से कम 11 सेकंड तक धीरे-धीरे सांस छोड़ने की क्षमता होनी चाहिए."

    शोध से यह भी पता चला है कि फेफड़ों की कम कार्यक्षमता उम्र से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पहले दिखाई देती है, जैसे: हृदय रोग, ऑस्टियोपरोसिस, टाइप 2 डायबिटीज़, और याददाश्त कमज़ोर होना.

    हालांकि इन संबंधों को अभी पुख़्ता तरीके से नहीं समझा जा सका है. बोडिश का मानना है कि फेफड़ों की सूजन शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकती है.

    स्वस्थ फेफड़ों के फ़ायदे image Getty Images मांसपेशियों की तरह ही, आप फेफड़ों के लिए जितने व्यायाम करेंगे, ये उतने ही मज़बूत बनेंगे

    फेफड़ों और हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के बीच संबंध दो-तरफा होता है. बोडिश कहती हैं कि अगर हम अपने फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखें, तो हम बुढ़ापे में अधिक समय तक बीमारियों से मुक्त रह सकते हैं.

    इस बारे में डिकिन्सन कहते हैं, "हालांकि उम्र के साथ फेफड़ों की क्षमता घटती है, लेकिन अगर आप अपने फेफड़ों की देखभाल करते हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है. स्वस्थ फेफड़े शरीर को ऑक्सीजन देने और कार्बन डाइऑक्साइड निकालने के लिए पर्याप्त क्षमता रखते हैं. लेकिन अगर फेफड़ों की सेहत में गिरावट की दर बढ़ जाती है, तो यह हमारे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन पर असर डाल सकता है."

    अगर आपको अपने फेफड़ों को लेकर चिंता है, तो डिकिन्सन सलाह देते हैं कि आप डॉक्टर से मिलें और 'स्पाइरोमीटर' से फेफड़ों के काम करने की क्षमता की जांच करवाएं. यह उपकरण आपकी सांस और उसकी गति को मापता है.

    स्पाइरोमीटर से फेफड़ों की जांच

    स्पाइरोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो आपकी एफ़वीसी को सटीकता से मापता है. साथ ही यह आपकी एफ़ईवी1 (फोर्स्ड एक्सपायरेट्री वॉल्यूम इन वन सेकेंड) को भी मापता है. यानी गहरी सांस लेने के बाद आप एक सेकंड में कितनी हवा बाहर निकाल सकते हैं.

    यह उपकरण एफ़ईवी1 और एफ़वीसी के अनुपात को भी बताता है, जिससे यह पता चल सकता है कि आपके एयरफ्लो में कोई रुकावट तो नहीं है. ये सब मिलकर आपके फेफड़ों की सेहत की पूरी जानकारी देते हैं.

    डिकिन्सन कहते हैं, "आदर्श तौर पर, अगर किसी को कोई लक्षण नहीं हैं, तो हर 10 साल में एक बार फेफड़ों की क्लिनिकल जांच करानी चाहिए. लेकिन अगर सांस फूलने जैसे असामान्य लक्षण हों, तो तुरंत जांच करानी चाहिए."

    फेफड़ों के काम करने की क्षमता कैसे सुधारें image Getty Images कुछ व्यायाम के ज़रिए आप फेफड़ों के बूढ़े होने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं

    जब आपको अपने फेफड़ों की स्थिति का पता चल जाए, तो शोध से यह साबित हुआ है कि कुछ कदम उठाकर आप फेफड़ों की क्षमता को बेहतर बना सकते हैं और उम्र के साथ इसके कमज़ोर होने की गति को कम कर सकते हैं.

    नियमित व्यायाम: यह सांस लेने की नलियों की सूजन को कम करता है और सांस से जुड़ी मांसपेशियों की ताकत और सहनशक्ति को बढ़ाता है.

    नमक की मात्रा कम करना: अधिक नमक फेफड़ों की सूजन और फाइब्रोसिस को बढ़ा सकता है. इसलिए खाने में नमक की मात्रा कम रखें.

    मछली के तेल, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन सी और ई से भरपूर आहार लें. ये फेफड़ों के किनारों को नुक़सान से बचाने में मदद कर सकते हैं.

    बोडिश सलाह देती हैं कि धूम्रपान और वेपिंग (इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट) दोनों छोड़ दें, ताकि सूजन पैदा करने वाले केमिकल से बचा जा सके.

    यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा में असिस्टेंट प्रोफेसर डैनियल क्रेगहेड कहते हैं कि वजन को कंट्रोल में रखना और अधिक चर्बी (फैट) से बचना भी फेफड़ों को सेहतमंद रखने का एक तरीका है.

    वह कहते हैं, "पेट की चर्बी फेफड़ों को पूरी तरह से हवा से भरने की क्षमता पर असर डाल सकती है."

    फेफड़ों को सेहतमंद बनाने का एक और तरीका भी...

    इन्सपायरेट्री मसल ट्रेनिंग (आईएमटी) यानी ऐसे उपकरण से सांस अंदर लेना जो सांस लेने में रुकावट पैदा करता हो. यह वह तकनीक है जिसे 1990 के दशक के मध्य से ही फेफड़े की क्षमता को बेहतर करने का एक असरदार तरीका माना गया है.

    इसका उपयोग एथलीट, गायक, और अस्थमा या सीओपीडी जैसी सांस की समस्याओं वाले लोग करते हैं.

    शोध से पता चला है कि आईएमटी लंग्स की क्षमता को बढ़ा सकता है और ब्लड प्रेशर को कम कर सकता है.

    आईएमटी का गोल्ड स्टैंडर्ड image Getty Images

    'पावरब्रीद' आईएमटी के लिए यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस से मान्यता प्राप्त डिवाइस है. इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड से रिकवरी में मददगार डिवाइस के तौर पर हाइलाइट किया था.

    इसे दुनियाभर के अस्पतालों में सर्जरी से पहले फेफड़ों की क्षमता सुधारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

    यह पल्मोनरी फाइब्रोसिस के इलाज में और आईसीयू में वेंटिलेटर पर मौजूद मरीजों की रिकवरी में भी मदद कर सकता है.

    आईएमटी कैसे करें?

    क्रेगहेड के अनुसार, शोध में यह पाया गया है कि दिन में दो बार 30 सांसों का आईएमटी सेशन करना सांस से जुड़ी मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने के लिए काफ़ी होता है.

    पावरब्रीद इंटरनेशनल में मेडिकल ऑफ़िसर सबरीना बराड़ कहती हैं कि आईएमटी को ऐसे समझा जा सकता है जैसे आप अपनी बांह और टांगों की मांसपेशियों के लिए वेटलिफ्टिंग करते हैं.

    उनका कहना है, "शरीर की अन्य मांसपेशियों को मज़बूत करने की तरह ही सांस लेने वाली मांसपेशियों को मज़बूत करना है. यह सांस से जुड़ी मांसपेशियों की सहनशक्ति और ताकत को बढ़ाता है और उम्र से जुड़ी फेफड़ों की क्षमता में गिरावट को कम करता है."

    "इसका मक़सद डायाफ्राम और पसलियों के बीच की मांसपेशियों को सक्रिय करना है."

    फूंक मारकर बजाने वाले इंस्ट्रूमेंट और सिंगिंग image Getty Images फेफड़ों को स्वस्थ रखने में गीत गाना और कोई विंड इंस्ट्रूमेंट बजाना भी मददगार हो सकते हैं

    एक और विकल्प है कि आप गाना शुरू करें या कोई विंड इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखें.

    न्यूयॉर्क सिटी के लुई आर्मस्ट्रॉन्ग सेंटर के शोधकर्ताओं ने अस्थमा से पीड़ित लोगों के फेफड़ों की काम करने की क्षमता सुधारने के लिए उन्हें अलग-अलग विंड इंस्ट्रूमेंट बजाना सिखाने का तरीका अपनाया है.

    कुछ वैज्ञानिकों ने तो ओकारिना नामक बांसुरी का एक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण भी डिज़ाइन किया है, जो फेफड़ों के काम करने की क्षमता सुधारने में मदद करता है.

    यूनिवर्सिटी ऑफ़ सदर्न डेनमार्क की असिस्टेंट प्रोफेसर मेटे कासगार्ड खुद एक प्रशिक्षित क्लासिकल सिंगर हैं. उन्होंने कई टेस्ट में भाग लिया है जिनमें देखा गया कि गाना सीओपीडी से पीड़ित लोगों की मदद कैसे कर सकता है.

    हालांकि कासगार्ड कहती हैं कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि गायन फेफड़ों को हो चुके नुक़सान को ठीक कर सकता है.

    लेकिन उनका मानना है कि यह फेफड़ों की सेहत को बेहतर कर सकता है क्योंकि यह सांस से जुड़ी मांसपेशियों के इस्तेमाल की क्षमता को बढ़ाता है.

    वह कहती हैं, "गीत गाने में एक प्रमुख बात है लंबी लाइनें गाना, जिसके लिए डायाफ्राम, पसलियों के बीच की मांसपेशियों और पेट की मांसपेशियों का नियंत्रण और लचीलापन ज़रूरी होता है."

    लेकिन आप फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए तरीका कोई भी अपनाएं, ये आपके फेफड़ों को हर चुनौती का सामना करने में मदद ज़रूर कर सकते हैं.

    बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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