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पाकिस्तान का झारा पहलवान जिसने 19 की उम्र में जापानी चैंपियन इनोकी को रिंग से फेंक दिया

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Facebook/MariyamJhara मोहम्मद ज़ुबैर उर्फ़ झारा पहलवान

लाहौर की पुरानी आबादी को दो हिस्सों में बांटने वाली और रावी नदी की तरफ़ जाने वाली सड़क पर भाटी चौक से कुछ ही दूर बाईं तरफ़ पीर मक्की का इलाक़ा है.

इस इलाक़े में कई पाकिस्तान पहलवानों के अखाड़े थे और कईयों के अखाड़े में उनकी कब्र है. जैसे भोलू पहलवान के अखाड़े में उनकी अपनी क़ब्र है. उनके पास ही उनके भाई दफ़न हैं और एक ऊंचे चबूतरे पर एक क़ब्र उनके भतीजे मोहम्मद ज़ुबैर उर्फ़ झारा पहलवान की है.

वही ज़ुबैर उर्फ़ झारा पहलवान जिसने महज 19 साल की उम्र में जापानी पहलवान एंटोनियो इनोकी को कुश्ती के एक मुकाबले में पटखनी दी थी.

झारा की कब्र से छह मीटर पश्चिम में उनके चाचा मोहम्मद अकरम उर्फ अकी पहलवान की कब्र है. 1976 में इनोकी ने अकी पहलवान को हराया था.

शाहिद नजीर चौधरी के शोध के मुताबिक, झारा के माता-पिता दोनों ही पहलवानों के परिवार से आते थे.

ज़ुबैर उर्फ़ झारा का जन्म 24 सितंबर 1960 को लाहौर में रुस्तम पंजाब और रुस्तम एशिया मोहम्मद असलम उर्फ अच्छा पहलवान के घर हुआ.

मंजूर हुसैन उर्फ भोलो पहलवान, आजम पहलवान, अकरम पहलवान, हस्सो पहलवान और मोअज्जम उर्फ गोगा पहलवान झारा के चाचा थे.

वह रुस्तम-ए-ज़मान गामा पहलवान के भाई रुस्तम हिंद इमाम बख्श के पोते और गामा किला वाला पहलवान के पड़पोते थे.

प्रोफ़ेसर मोहम्मद असलम की किताब 'ख़फ़तगान-ए-ख़ाक-ए-लाहौर' से पता चलता है कि उनके निधन पर रोज़ाना जंग ने लिखा था कि झारा की उम्र 31 साल थी.

पहला मुकाबला: एक मिनट में प्रतिद्वंद्वी को दी पटखनी image NASIR BHOLU जापानी पहलवान एंटोनियो इनोकी ने झारा के चाचा मोहम्मद अकरम उर्फ़ अकी पहलवान को हराया था

शाहिद नजीर चौधरी ने झारा पहलवान के चचेरे भाई नासिर भोलू के हवाले से लिखा है कि जब ज़ुबैर शुरुआती पढ़ाई की परीक्षा में फेल हो गया तो वह बहुत खुश हुआ क्योंकि अब उसकी पहलवानी का रास्ता साफ़ हो गया.

चौधरी लिखते हैं,"इसके बाद बेहद शर्मीले और शांत स्वभाव के ज़ुबैर को मोहिनी रोड स्थित अखाड़े में भोलू पहलवान की कड़ी निगरानी में प्रतिद्वंद्वी को अपने हाथों की ताकत से वश में करने का प्रशिक्षण दिया गया."

गुरु की आज्ञा का पालन करने वाले झारा ने अपने पहले मुकाबले में मुल्तान के ज़ावर पहलवान को सिर्फ़ एक मिनट में हरा दिया.

दूसरे मुकाबले में झारा ने गुजरांवाला के रहीम सुल्तानीवाला रुस्तम हिंद के बेटे मेराज पहलवान के शिष्य मोहम्मद अफ़ज़ल उर्फ़ गोगा पहलवान को लाहौर के गद्दाफ़ी स्टेडियम में 27 जनवरी, 1978 को सत्रह मिनट में हरा दिया.

इसके बाद झारा के साथ इनोकी की कुश्ती के मुकाबले का समय आया.

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झारा को ऐसे किया गया तैयार image NASIR BHOLU नासिर भोलू, जो अक्सर झारा के साथ कुश्ती करते थे

शाहिद नजीर चौधरी ने 'इतिहास रचने वाले पहलवान' शीर्षक से अपने लेख में लिखा कि झारा का नाम अब सनसनी बन चुका था और लोग उसे देखने के लिए अखाड़े में जमा होने लगे थे.

अख्तर हुसैन शेख अपनी किताब 'दास्तान शाह ज़ोरान' में इनोकी के ख़िलाफ़ मैच के लिए झारा की तैयारी का सिलसिलेवार वर्णन करते हैं.

"झारा को निर्देश दिया गया कि वह रावी नदी तैरकर पार करे और फिर अखाड़े तक वापस आए. उसे रात में दो बजे ही जगाया जाता और फिर नमाज़ के बाद वह तीन हज़ार उठक-बैठक लगाता."

"इसके बाद फर्रुखाबाद से लाहौर के शाही किले तक दौड़ लगाता. आधे घंटे में अखाड़ा तैयार करता और दो हज़ार तीर फेंकता और इसके बाद दो हट्टे-कट्टे पहलवान को कंधे पर बिठाकर रावी के पुल को छूते हुए वापस दौड़ता."

चौधरी ने आगे बताया, "फिर वह ट्रेडमिल पर दौड़ते, लोहे का ब्रेसलेट पहनते और कसरत करते. वह आधे घंटे पीटी और आधे घंटे 15 पाउंड के डंबल उठाते. छोटे-बड़े पहलवानों के साथ कुश्ती करते और फिर शाम को कसरत होती."

चौधरी लिखते हैं कि नासिर भोलू ने उन्हें बताया था, "झारा और वो आपस में कुश्ती लड़ते थे, लेकिन वह मुझसे ज़्यादा ताकतवर था."

उसमें भोलू पहलवानों जैसी तेज़ी, फुर्ती और साहस था. वह 6 फुट 2 इंच लंबा और फौलादी शरीर वाला था. अच्छा पहलवान गर्व से कहते थे, "झारा अपने चाचा पर गया है."

अख्तर हुसैन शेख़ लिखते हैं, "दो किलो मांस, तीन किलो मांस का स्टू, दो किलो दूध और फलों का रस प्रतिदिन उसके आहार में शामिल था."

टिकट के लिए गद्दाफ़ी स्टेडियम के बाहर प्रदर्शन image Getty Images

17 जून 1979. लाहौर का गद्दाफ़ी स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. भीड़ चालीस हज़ार की संख्या पार कर गई थी. सभी टिकटें बिक चुकी थीं.

टिकट नहीं मिलने के कारण स्टेडियम के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और फिर पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा.

झारा पहलवान लाल गाउन और बड़ी पगड़ी पहने अखाड़े में उतरे. गाउन पर साफ़ शब्दों में पाकिस्तान लिखा था. इनोकी की कमीज़ भी लाल थी.

खेल कमेंटेटर अरीज़ अरिफिन लिखते हैं कि ऐसे समय में जब दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की पहुँच बहुत कम थी, इनोकी को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली.

उनकी प्रसिद्धि का प्रमाण मोहम्मद अली और हल्क होगन जैसे महान खिलाड़ियों के ख़िलाफ़ उनके मुकाबलों से मिलता है.

"दूसरी ओर, ज़ुबैर सिर्फ़ तीन साल से कुश्ती लड़ रहा था और सिर्फ़ उन्नीस साल का था. वह पहलवान अकरम का भतीजा था, ऐसे में यह मुकाबला एक बदले की कहानी बन गया. यही वजह है कि इस रोमांचक मुकाबले का इंतजार पूरे पाकिस्तान को था."

पाकिस्तानी वायुसेना के सेवानिवृत्त ग्रुप कैप्टन परवेज़ महमूद सामाजिक और ऐतिहासिक मुद्दों पर लिखते हैं.

भोलू पहलवान परिवार से बचपन से जुड़े होने के कारण उन्होंने खुद उनके दंगलों को देखा था.

अपने एक लेख में वे लिखते हैं कि मुक़ाबले से पहले ही लाहौर शहर में जश्न का माहौल था.

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100 रुपए का एक टिकट image ullstein bild via Getty Images जापानी पहलवान एंटोनियो इनोकी

"न्यूनतम प्रवेश टिकट सौ रुपये का था, जो उस समय एक बड़ी राशि थी. क्रिकेट मैच का टिकट करीब दस रुपये में बिकता था."

"अकरम उर्फ़ अकी अपने भतीजे के साथ कोच के तौर पर मौजूद थे. झारा ने ढोल की थाप पर एक पैर पर पारंपरिक कुश्ती नृत्य किया. इसके बाद इनोकी रिंग में आए, दर्शकों की ओर हाथ हिलाया और अपने कोने में चले गए."

'प्रतियोगिता में पांच राउंड थे और प्रत्येक राउंड के बीच पांच मिनट का ब्रेक था.'

परवेज़ महमूद के अनुसार, शुरुआत तो तेज़ हुई, लेकिन जल्द ही साफ़ हो गया कि इनोकी झारा के क़रीब आने से हिचकिचा रहे थे, जबकि झारा पूरे मुकाबले के दौरान आक्रामक मूड में थे.

उन्होंने रिंग में इनोकी को बार-बार टैकल किया और रस्सियों से धक्का दिया. उम्र का अंतर, जो तीन साल पहले अकरम पहलवान के ख़िलाफ़ और इनोकी के पक्ष में था, इस बार वह झारा के पक्ष में गया.

'ब्रेक के दौरान इनोकी रस्सियों पर टिककर आराम करता था, जबकि झारा रिंग में चक्कर लगाता था.'

दूसरे राउंड में झारा ने एक बार फिर इनोकी को ज़मीन पर गिरा दिया और उनकी छाती पर बैठकर उनकी बांह मरोड़ने की कोशिश की.

जब झारा ने 'धोबी पटका' आज़माया और इनोकी की पीठ पर ज़ोरदार प्रहार किया, तो लाहौर के दर्शक पागल हो गए.

दर्शकों का उत्साह तब दोगुना हो गया जब झारा ने एक समय इनोकी को रिंग से बाहर फेंक दिया और उन्हें वापस लौटने में आधा मिनट लग गया.

परवेज़ महमूद लिखते हैं कि तीसरे राउंड में, झारा ने इनोकी को लगभग गिरा ही दिया था और इनोकी इस झटके से अचेत हो गए थे.

कुछ लोगों को लगा कि नंगे पाँव झारा, कठोर सतह वाले रिंग में भारी तलवों वाले इनोकी की तुलना में कमज़ोर स्थिति में थे.

चौथे राउंड में, इनोकी ज़्यादातर ज़मीन पर ही रहे और झारा को पास आने से रोकने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल किया.

"वे पूरी तरह थके हुए लग रहे थे, जबकि झारा अंत तक तरोताजा रहे."

image NASIR BHOLU 1910 में ज़िबिस्को के साथ लंदन में गामा पहलवान

"पहले चार राउंड बेकार रहे. पांचवें राउंड में, इनोकी धीरे-धीरे झारा की ओर बढ़ा और झारा उसके चारों ओर कूदता रहा. एक समय ऐसा आया जब दोनों की गर्दनें आपस में टकरा गईं और झारा ने उसे ज़ोर से मारा, लेकिन इनोकी के पीछे जाकर उसे पकड़ नहीं सका. इनोकी ने उसकी बांहों और उंगलियों को मरोड़ने की कोशिश की, लेकिन झारा ने उसे आसानी से छुड़ा लिया."

"बाउट के आखिरी क्षणों में, झारा ने इनोकी को अपनी पीठ के बल दबा दिया. एक समय तो ऐसा लगा कि इनोकी के कंधे ज़मीन को छू गए हैं, लेकिन घंटी बज गई."

परवेज़ महमूद के अनुसार, परिणाम घोषित होने से पहले, इनोकी ने खुद आगे आकर झारा का हाथ उठाया और माना कि पाकिस्तानी पहलवान ने बेहतर प्रदर्शन किया है.

झारा, उनके साथी और आस-पास मौजूद दर्शक खुशी से उछल पड़े. कुछ देर बाद बाकी दर्शकों को भी यह बात समझ आ गई और फिर उन्होंने जश्न मनाया.

'अली बनाम इनोकी' पुस्तक के लेखक जोश ग्रॉस लिखते हैं कि पांच राउंड की कड़ी लड़ाई के बावजूद मुकाबला अनिर्णायक रहा, लेकिन इनोकी ने आखिरकार झारा का हाथ हवा में उठा दिया.

"लाहौर की भीड़ इस दृश्य को देखकर उत्साह से भर गई. यही वह क्षण था जिसने इनोकी को पाकिस्तानी लोगों के दिलों में और भी मज़बूत कर दिया और साथ ही इस्लाम के प्रति इनोकी का रुझान भी बढ़ता गया."

(बाद में इनोकी ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर मोहम्मद हुसैन रख लिखा)

मैच फिक्सिंग का आरोप image NASIR BHOLU भोलू पहलवान अपने भाइयों असलम और गोगा के साथ.

इस ऐतिहासिक मुकाबले के बाद, इनोकी और ज़ुबैर झारा घनिष्ठ मित्र बन गए.

परवेज़ महमूद लिखते हैं, "उस रात लाहौर में अफ़वाहें फैलीं कि मैच फिक्स था और इनोकी ने पैसे लेकर हार स्वीकार कर ली है."

चौधरी लिखते हैं कि भोलू बंधुओं ने इस अफवाह को दूर करने के बहुत प्रयास किए. प्रेसवार्ता में बताया कि यह अफ़वाह उनके विरोधियों ने गढ़ी है और इसमें सच्चाई नहीं है.

घातक साबित हुई नशे की लत image Facebook/MariyamJhara झारा पहलवान

गोगा पहलवान ने एक बार फिर झारा को चुनौती दी और 17 अप्रैल 1981 को दोनों के बीच कुश्ती हुई, लेकिन झारा ने आक्रामक तरीके से उसे फिर से हरा दिया.

चौधरी ने लिखा है कि कैसे झारा ने अपने एक पड़ोसी की शिकायत पर लाहौर रेलवे स्टेशन पर भारत से तस्करी करके लाए गए पान और कपड़े के बदले वसूली करने वालों की पिटाई कर दी थी. इसके बाद खुद ही वसूली शुरू कर दी.

"भोलू और उसके भाइयों ने झारा को बिगड़ने से बचाने की कोशिश में उसका विवाह उसके चाचा गोगा पहलवान की बेटी सायरा से करा दिया."

चौधरी के अनुसार, "अब उसने ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था. एक दिन, झारा तक्षशिला में एक कबाब विक्रेता के बाहर खड़ा था. वो नशे में था, नशे का असर इतना ज़्यादा था कि झारा ने सारे कबाब खा लिए. अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई और उसे उल्टियां होने लगीं. अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि झारा हेरोइन का आदी है."

झारा किसी की सलाह नहीं मान रहा था. चौधरी लिखते हैं कि कुछ ठेकेदारों ने उनका आत्मसम्मान बढ़ाने के लिए उन्हें रुस्तम लाहौर भोला गादी के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया.

"कुश्ती के समय ही झारा सिगरेट का ज़हर खाकर अखाड़े में उतरा. गामा पहलवान, इमाम बख़्श पहलवान और भोलू भाइयों की आखिरी लौ टिमटिमाते दीये की तरह थी, उसका लहराता शरीर अखाड़े में हास्यास्पद लग रहा था. मुकाबला हुआ और झारा ने भोला गादी को हरा दिया."

"1984 में झारा ने तिरथियां से अंतिम कुश्ती लड़ी. यह झारा की आखिरी कुश्ती थी."

चौधरी के अनुसार,"इसके बाद झारा अखाड़े में जाते थे लेकिन धक्का-मुक्की और कुश्ती से दूर रहते थे."

10 सितंबर 1991 को अल्पायु में ही हृदयाघात से उनकी मौत हो गई. गामा पहलवान की तरह झारा पहलवान भी कभी कोई मुकाबला नहीं हारा.

लेकिन 'ख़फ़तगान-ए-ख़ाक-ए-लाहौर' में लिखा है कि 'युवावस्था में निम्न श्रेणी के नशीले पदार्थों की लत घातक साबित हुई.

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