BBC सीमांचल में मुस्लिम वोटर कई सीटों पर काफ़ी असर रखते हैं (सांकेतिक तस्वीर) बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने पाँच सीटें जीतकर हलचल मचा दी थी.
एआईएमआईएम की इस जीत को महागठबंधन के लिए बड़ा झटका माना गया था.
एआईएमआईएम ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन सीटें जीती थी.
इनमें से तीन सीटों पर महागठबंधन के उस समय के विधायक तीसरे नंबर पर रहे थे.
ये सीटें थीं अमौर, बहादुरगंज और बायसी.
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इन तीनों सीटों पर दूसरे नंबर पर एनडीए के प्रत्याशी थे. ज़ाहिर तौर पर मुस्लिम बहुल सीमांचल में मुस्लिम वोटों का बँटवारा हुआ था.
हालाँकि सीमांचल की राजनीति की समझ रखने वाले इन तीन सीटों पर महागठबंधन के तीसरे नंबर पर जाने की वजह बड़ी सत्ता विरोधी लहर को बताते हैं.
एआईएमआईएम ने साल 2020 में जो सीटें जीतीं, उनमें तीन पर आरजेडी और दो पर कांग्रेस के विधायक थे.
हालाँकि 2020 में जीते एआईएमआईएम के पाँच विधायकों से अख़्तरुल ईमान को छोड़कर बाक़ी सभी चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे.
सीमांचल में इस बार कांग्रेस 12 सीट, आरजेडी 9 सीट, वीआईपी 2 सीट और सीपीआईएमएल एक सीट पर लड़ रही है. वहीं एआईएमआईएम ने पूरे बिहार में 25 उम्मीदवार उतारे हैं.
सीमांचल में पार्टी 15 सीट पर अपनी क़िस्मत आज़मा रही है.
वहीं, एनडीए की बात करें तो बीजेपी 11 सीट, जेडीयू 10 सीट और एलजेपी (आर) तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
सीमांचल में एआईएमआईएम का उभार
BBC सीमांचल के नतीजों पर विपक्षी दलों की बड़ी उम्मीद टिकी हो सकती है बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया- इन चार ज़िलों को सीमांचल कहा जाता है.
बीते चुनाव में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में 12 एनडीए (8 बीजेपी, 4 जेडीयू), 7 महागठबंधन (कांग्रेस 5, आरजेडी और सीपीआईएमएल 1-1) और एआईएमआईएम ने 5 सीट पर कब्ज़ा जमाया था.
उस वक़्त कांग्रेस और आरजेडी ने 11-11 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
माइनॉरिटी कमिशन ऑफ़ बिहार के मुताबिक़, सीमांचल के किशनगंज में 67% मुस्लिम, कटिहार में 42%, अररिया में 41% और पूर्णिया में 37% मुस्लिम आबादी है.
साल 2015 में एआईएमआईएम ने बिहार में सीमांचल की 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार पहली बार उतारे थे.
उस साल चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन किशनगंज और कोचाधामन सीट पर अच्छा प्रदर्शन किया था.
एआईएमआईएम ने अक्तूबर 2019 में किशनगंज विधानसभा उपचुनाव जीतकर अपना खाता खोला.
इस उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार कमरूल होदा ने बीजेपी की स्वीटी सिंह को हराया था.
साल 2015 में ये सीट कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने जीती थी.
स्पष्ट तौर पर इस जीत ने कांग्रेस और आरजेडी दोनों की बेचैनी बढ़ा दी, जिन्हें सीमांचल के मुसलमान वोट देते आए थे.
ये बेचैनी साल 2020 में एआईएमआईएम की पाँच सीटों की जीत के साथ और ज़्यादा बढ़ गई.
एआईएमआईएम का गठन नवंबर 1927 में हुआ था. शुरुआत में ये पार्टी तेलंगाना तक सीमित थी. लेकिन बाद में पार्टी ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार में भी विस्तार किया.
साल 2020 में एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़ एआईएमआईएम ने 5 सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 14 सीट पर उसके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी.
एआईएमआईएम को राज्य में पड़े कुल मतदान का 1.24 फ़ीसदी वोट मिला था, लेकिन जिन सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे, उनमें पार्टी का वोट प्रतिशत 14.28 फ़ीसदी था.
पूर्णिया में अमौर के मतदाता मुजीबुर रहमान बीबीसी से कहते हैं, "ओवैसी बैरिस्टर है. उन्होंने पूरी दुनिया देखी है, वो काम करते हैं. उनकी सरकार बनें या ना बनें, हम उन्हीं की पार्टी को वोट देंगे."
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बिहार के जातीय सर्वे के मुताबिक़ राज्य में मुस्लिम आबादी क़रीब 18% है और इस मुस्लिम आबादी को आरजेडी का कोर वोटर माना जाता है.
लेकिन राज्य में मुस्लिम आबादी का कोई सर्वमान्य नेता नहीं दिखता. आरजेडी नेता तसलीमुद्दीन की साल 2017 में मृत्यु होने के बाद, नेतृत्व का ये ख़ालीपन ज़्यादा बढ़ गया.
तसलीमुद्दीन ने सीमांचल के कटिहार को छोड़कर बाक़ी सभी तीनों लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया था. तसलीमुद्दीन को 'सीमांचल का गांधी' कहा जाता था.
असदुद्दीन ओवैसी और एआईएमआईएम, इसी ख़ालीपन को भरने की कोशिश में हैं.
जैसा कि पूर्णिया के एक नौजवान मतदाता आमिर हसन कहते हैं, "हमें अपना लीडर चाहिए. बिहार में हमारा कोई लीडर नहीं है. हम लोगों का मन बना हुआ है एआईएमआईएम को वोट देने का. वो ठीक बात करते हैं."
किशनगंज शहर से बाहर निकलते ही ज़िया उल हक़ हमें चाय की दुकान पर मिले.
वह कहते हैं, "पिछली बार भी एआईएमआईएम को वोट दिया था. इस बार भी उसी को देंगें. उसका विधायक पिछली बार वाला हम लोगों को बेवकूफ़ बनाकर भाग गया. लेकिन हमें सिर्फ़ ओवैसी से उम्मीद है. वो ही सीमांचल का ख़्याल रखते हैं. मुसलमान की बात वही उठा रहे हैं."
हाल ही में जब महागठबंधन ने मुकेश सहनी को बतौरी उप-मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया, तो सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर बहस होने लगी थी कि आख़िर 18 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी के किसी नेता को उप-मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट क्यों नहीं किया जाता?
वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद कहते हैं, "सीमांचल के इलाक़े के मुस्लिम युवा ओवैसी को आइकॉन की तरह देखते हैं. उन्हें ओवैसी की बातें, उनका भाषण और कई मसलों पर स्टैंड लेना पसंद है. युवाओं की ये पसंद ओवैसी को कितनी जीत दिला पाएगी, ये देखने वाली बात होगी. लेकिन युवाओं में ओवैसी को लेकर आकर्षण है."
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'पिछली बार ग़लत फ़ैसला लिया था'
BBC सीमांचल में मतदाताओं का रुख़ मिला जुला दिखता है सीमांचल में हमें ऐसे कई मतदाता मिले, जो ये कहते हैं कि उनसे साल 2020 में ग़लती हुई थी.
किशनगंज के बहादुरगंज में हमें खेत में काम करते अशरफ़ रेज़ा मिले.
वह कहते हैं, "पिछली बार ग़लत फ़ैसला हो गया था. हम लोगों ने भावना में बहकर ओवैसी को वोट दे दिया था. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा."
अररिया के रजोखर बाज़ार में भी बीबीसी को मुस्लिम मतदाताओं के बीच मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली. हालाँकि इनमें से ज़्यादातर का रुझान महागठबंधन की तरफ़ था.
स्थानीय शख़्स परवेज़ आलम बीबीसी से कहते हैं, "मुसलमान बँट कर वोट करते हैं. इसलिए मुसलमानों का ये नतीजा होता है. लेकिन इस बार महागठबंधन चलेगा."
उनके पास बैठे शाह आलम कहते हैं, "महागठबंधन की लड़ाई ही असली है. ओवैसी तो बीजेपी की मदद करने आए हैं."
लेकिन पास ही बैठे अरमान अंसारी कहते हैं, "हम लोग ओवैसी को ही वोट देंगें. ना तो नीतीश और ना ही तेजस्वी. कोई मुसलमानों के लिए नहीं लड़ता है. अभी आई लव मोहम्मद पर ओवैसी ही बोल रहे हैं. बाक़ी तो कोई नहीं बोल रहा है."
दरअसल मुसलमानों की नाराज़गी अगर तेजस्वी से है, तो नीतीश कुमार से नए वक़्फ़ क़ानून को लेकर भी नाराज़गी है.
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Getty Images तेजस्वी यादव बिहार में रोज़गार को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं (फ़ाइल फ़ोटो) साल 2010 में मुजाहिद आलम जेडीयू में आए थे. लेकिन उन्होंने वक़्फ़ संशोधन बिल को जेडीयू के समर्थन से नाराज़ होकर इसी साल अप्रैल में पार्टी छोड़ दी थी.
मुजाहिद आलम अब आरजेडी में शामिल हो गए हैं और अब वो कोचाधामन सीट से आरजेडी के उम्मीदवार हैं.
मुजाहिद आलम शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे, इसलिए इलाक़े में वो 'मास्टर मुजाहिद' के नाम से मशहूर हैं.
मास्टर मुजाहिद बीबीसी से कहते हैं, "नीतीश कुमार का अब स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता. हम लोग जब सीएए-एनआरसी को लेकर सीएम के पास गए थे, तो सीएम ने तुरंत रिएक्ट करते हुए सभी मुस्लिम संगठनों की मीटिंग बुलाई थी."
"उन्होंने ये भरोसा दिलाया कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा. लेकिन अब वो पहले वाले नीतीश कुमार नहीं रहे."
इस बार आरजेडी का प्रदर्शन कैसा होगा?
इस सवाल पर मुजाहिद आलम कहते हैं, " तेजस्वी यादव बीते 10 साल में मेच्योर हो गए हैं. वो मुद्दों को तकनीकी और वैज्ञानिक तरीक़े से देखते हैं. इंडस्ट्री पर भी उनका ज़ोर है."
"वो बाढ़, पलायन अशिक्षा झेलते सीमांचल के विकास के लिए सीमांचल डेवलेपमेंट काउंसिल बनाएँगे. ऐसे में मुसलमानों को उन पर भरोसा है और अबकी बार हम अच्छा प्रदर्शन करेंगें."
वह कहते हैं, "एआईएमआईएम पर पिछली बार लोगों ने भरोसा किया था. ओवैसी साहब ने अपनी रैलियों में कोचाधामन रेलवे स्टेशन बनाने, एएमयू को केंद्र से फ़ंड दिलवाने, सुरजापुरी मुसलमानों को केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में डलवाने जैसे वादे किए थे."
"लेकिन वह तो अपने विधायकों तक को अपने साथ नहीं रख पाए. विधायक अगर उनसे दूर चले गए तो उनकी कुछ ना कुछ ग़लती ज़रूर रही होगी."
'लालू जी की चलती तो हमारा गठबंधन हो गया होता'एआईएमआईएम ने बिहार में चुनाव की घोषणा से पहले आरजेडी को चिट्ठी लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की अपील की थी.
पार्टी महागठबंधन में महज़ 6 सीट चाहती थी. लेकिन आरजेडी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
हाल ही में तेजस्वी यादव ने एआईएमआईएम के साथ गठबंधन ना करने के सवाल पर कहा, "हमारे गठबंधन में एक्सट्रीमिस्ट की कोई जगह नहीं है."
जिसके जवाब में असदुद्दीन ओवैसी ने कोचाधामन की सभा में कहा, "जो तुम्हारे सामने नहीं झुकता उसको तुम (तेजस्वी) एक्सट्रीमिस्ट कहते हो. सिर पर टोपी और चेहरे पर दाढ़ी देखकर एक्सट्रीमिस्ट कहा, ये पूरे सीमांचल के आवाम की तौहीन है."
एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्णिया की अमौर सीट से उम्मीदवार अख़्तरुल ईमान बीबीसी से बातचीत में चुनाव में अच्छे प्रदर्शन का दावा करते हैं.
कभी आरजेडी में रहे अख़्तरुल ईमान कहते हैं, "तेजस्वी यादव तो नशे में चूर हैं. ऐसा लगता नहीं कि राजद का हुकूमत करने का इरादा है. जिस 'एमवाई (मुस्लिम-यादव)' पर राजद की सियासत रही, वो आज 'ए टू ज़ेड' की बात करती है लेकिन इसमें वो मुसलमान को नहीं जोड़ना चाहती."
"वो 'सन ऑफ़ मल्लाह' को जोड़ लेगी जिसके पास वोट नहीं है लेकिन हमसे वो गठबंधन नहीं करेंगें. हमारा इरादा था कि सेक्युलर वोट ना बिखरे. अगर राष्ट्रीय जनता दल में लालू जी की चलती तो हमारा गठबंधन हो गया होता."
वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव कहते हैं, "आरजेडी ओवैसी के साथ गठबंधन से परहेज़ कर रही है. इसकी वजह है कि ओवैसी के साथ हाथ मिलाने पर ध्रुवीकरण होगा."
"सीमांचल में पहले ही गिरिराज सिंह 'हिंदू स्वाभिमान यात्रा' कर चुके है. सम्राट चौधरी एसआईआर की प्रक्रिया के वक़्त 'घुसपैठिया' का बयान दे कर ध्रुवीकरण की कोशिश कर चुके हैं. ऐसे में अगर ओवैसी महागठबंधन में आते तो ये ध्रुवीकरण करने वाला साबित होता."
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Getty Images अमित शाह कई बार बिहार में 'घुसपैठियों' का मुद्दा उठा चुके हैं बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सीमांचल में 24 में से आठ सीटें जीती थीं. इसमें कटिहार की प्राणपुर विधानसभा सीट भी शामिल है, जहाँ मुस्लिम मतदाता 47% हैं.
साल 2010 से ये सीट बीजेपी के खाते में है. साल 2020 में यहाँ से बीजेपी की निशा सिंह जीती थीं.
बीजेपी सीमांचल में घुसपैठियों का मुद्दा उठाती रही है.
एसआईआर के दौरान भी पार्टी ने ये मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया.
ख़ुद गृहमंत्री इस चुनाव में प्रचार के दौरान कह चुके हैं कि कांग्रेस ने "वोटर अधिकार यात्रा नहीं, बल्कि घुसपैठिया बचाओ यात्रा" निकाली थी.
हालाँकि चुनाव आयोग ने अब तक किसी भी मतदान में हिस्सा लेने वाले विदेशी नागरिक के बारे में कोई आँकड़ा जारी नहीं किया है.
सीमांचल के नेता और किशनगंज के ज़िला मंत्री पंकज कुमार साहा बीबीसी से कहते हैं, "हम लोग विकास योजनाओं के आधार पर वोट मांगते है. हमें मुस्लिम मतदाता भी वोट करते हैं. कम या ज़्यादा, ये अलग विषय है. विदेशियों के कारण हम पिछड़ जाते हैं. हम चुनाव मज़बूती से लड़ते हैं. और मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने की इच्छा भी रखते हैं."
हालाँकि बीजेपी ने बिहार में जिन 101 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है, उनमें एक भी मुसलमान नहीं है.
सुरजापुरी, कुल्हैया और शेरशाहाबादी मुस्लिम
Getty Images वक़्फ़ संशोधन क़ानून को लेकर मुसलमानों का एक वर्ग नीतीश कुमार से नाराज़ दिखता है (फ़ाइल फ़ोटो) दरअसल माना जाता है कि बीजेपी के कई नेता जिन मुसलमानों को 'घुसपैठिया' कह रहे हैं, वो शेरशाहाबादी मुस्लिम हैं.
सीमांचल और कोसी के इलाक़े में बसे ये मुस्लिम, पश्चिम बंगाल से आए हैं और ख़ुद का संबंध शेरशाह सूरी से बताते हैं. ये बांग्ला ज़ुबान बोलते है और काफ़ी मेहनती होते हैं.
अगर अन्य मुसलमानों को देखें, तो सीमांचल के मुसलमान ख़ुद को दो भागों में बाँटते हैं. देसी और पछिमा. देसी यानी सीमांचल के स्थानीय मुस्लिम और पछिमा यानी पश्चिम से आए मुस्लिम.
बिहार के उत्तरपूर्व में स्थित सीमांचल में सुरजापुरी और कुल्हैया ख़ुद को देसी मुस्लिम कहते हैं. आबादी के लिहाज़ से सीमांचल में सुरजापुरी सबसे ज़्यादा हैं.
किशनगंज ज़िले की चारों विधानसभा में सुरजापुरी मुसलमानों की बड़ी आबादी है.
पूर्णिया की अमौर और बायसी विधानसभा, कटिहार की बलरामपुर विधानसभा पर सुरजापुरी मुसलमानों की चुनावों में निर्णायक भूमिका मानी जाती है.
इसी तरह अररिया ज़िले में दो सीट जोकीहाट और अररिया में कुल्हैया निर्णायक भूमिका मानी जाती है.
साल 2020 में सीमांचल में 11 मुस्लिम विधायक जीते थे, जिसमें 6 सुरजापुरी मुस्लिम थे.
सुरजापुरी मुसलमानों की एक बड़ी आबादी इस तरह से 'शेरशाहाबादियों' को अलग-थलग करने की कोशिश से नाराज़ दिखती है.
बहादुरगंज के दमदमा गाँव में अशरफ़ रेज़ा अपने शेरशाहाबादी दोस्त के साथ खेत में आलू की बुआई कर रहे हैं.
वह कहते हैं, "नेता लोग हमारे दिमाग़ में उल्टी-सीधी बात डालते हैं. नेताओं को ये काम नहीं करना चाहिए. इससे हमारे भाईचारे में खलल पड़ता है."
सीमांचल में 11 नवंबर को मतदान होना है. स्पष्ट तौर पर यहाँ एनडीए की कोशिश मुस्लिम वोटों के बँटवारे की होगी.
वहीं विपक्षी दल अपने उम्मीदवारों के पक्ष में मुस्लिमों की एकतरफ़ा वोटिंग की उम्मीद कर रहे होंगे.
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