11 अगस्त 1966 का दिन था, जब अजीम प्रेमजी के जीवन में भूचाल आ गया। केवल एक फोन ने उनकी जिंदगी बदल दी। ये फोन था उनके पिता के निधन का। आज भले ही अजीम प्रेमजी दिग्गज आईटी कंपनी विप्रो के मालिक हैं, जिन्हें लोग दानवीर के नाम से भी जानते हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब थे वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे। चलिए जानते हैं कैसे संकट से निकलकर उन्होंने आईटी कंपनी की नींव रखी और सफलता हासिल की।
बर्मा से भारत लौटा परिवार अजीम प्रेमजी के पिता एमएच प्रेमजी का परिवार एक समय बर्मा यानि म्यांमार में रहता था। वहां से लौटकर वे गुजरात के कच्छ में बस गए। गुजरात जाकर उन्होंने साल 1945 में वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट लिमिटेड नाम से एक कंपनी की स्थापना की। वे शुरुआत में तेल का बिजनेस करते थे।
अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई, 1945 अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ। वे पढ़ाई में काफी होशियार थे। इसके बाद जब पिता का कारोबार अच्छा चलने लगा तो उन्होंने अपने बेटे को आगे की पढ़ाई के लिए स्टेनफोर्ड भेजा दिया। लेकिन उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई।
पढ़ाई छोड़कर वापस आना पड़ा भारत11 अगस्त 1966 आपको अजीम प्रेमजी के पास एक फोन आता है कि उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस लौटना पड़ा। वे केवल 21 साल के थे तब परिवार और कारोबार की जिम्मेदारी उनके कांधों पर आ गई।
पिता की मौत के बाद बिजनेस में नुकसान पिता की मौत के बाद उनका कारोबार नुकसान में चला गया। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने हार नहीं मानी और बिजनेस का विस्तार किया। उन्होंने तेल के साथ भी साबुन और अन्य प्रोडक्ट का बिजनेस भी शुरू किया।
कैसे शुरू हुई WIPRO अपने पिता की कंपनी वेस्टर्न इंडिया प्रोडक्ट्स लिमिटेड के नाम को ही छोटा करके विप्रो कर दिया गया। उन्होंने इसके बाद बिजनेस का विस्तार किया। वे तब वे समझ चुके थे कि आने वाला समय आईटी का है इसलिए उन्होंने आईटी कारोबार कि भी शुरुआत की।
सफलता के गाढ़े झंडे विप्रो के आईटी बिजनेस की शुरुआत के बाद कुछ ही सालों में बिजनेस ने सफलता हासिल कर ली। साल 1970 में ही कंपनी का रेवेन्यू 7.2 करोड़ रुपये हो गया था। उस समय आईबीएम जैसी कई बड़ी कम्पनियां थी, लेकिन फिर भी विप्रो अपनी जगह बनने में सफल रही।
मिनी-कंप्यूटर और हार्डवेयर निर्माणकंपनी ने साल 1980 में अपने हार्डवेयर निर्माण और मिनी कंप्यूटर की शरुआत की। भारत में आईटी की नींव पड़ी रही थी। इसका फायदा कंपनी को खूब हुआ। इसके बाद कंपनी लगातार सफलता के कीर्तिमान हासिल करती रही।
पद्म विभूषण से सम्मानित अजीम प्रेमजी को साल 2011 में देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। वह विप्रो से रिटायर हो चुके हैं और उनकी जगह उनके बेटे रिशद प्रेमजी और तारीक प्रेमजी कंपनी संभाल रहे हैं। कंपनी में 2 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और इसका मार्केट कैप 2.25 लाख करोड़ से भी ज्यादा है।
परोपकार में अव्वल
अजीम प्रेमजी का नाम न केवल बिज़नस जगत में मशहूर है बल्कि वे बड़े दानदाताओं में भी शामिल है। उन्होंने 2.2 बिलियन डॉलर की संपत्ति दान देने का ऐलान किया है। अजीम प्रेमजी ने मुश्किल दौर में भी हार ना मानकर यह साबित कर दिया की बुलंद इरादे और लगन से सफलता हासिल की जा सकती है।
बर्मा से भारत लौटा परिवार अजीम प्रेमजी के पिता एमएच प्रेमजी का परिवार एक समय बर्मा यानि म्यांमार में रहता था। वहां से लौटकर वे गुजरात के कच्छ में बस गए। गुजरात जाकर उन्होंने साल 1945 में वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट लिमिटेड नाम से एक कंपनी की स्थापना की। वे शुरुआत में तेल का बिजनेस करते थे।
अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई, 1945 अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ। वे पढ़ाई में काफी होशियार थे। इसके बाद जब पिता का कारोबार अच्छा चलने लगा तो उन्होंने अपने बेटे को आगे की पढ़ाई के लिए स्टेनफोर्ड भेजा दिया। लेकिन उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई।
पढ़ाई छोड़कर वापस आना पड़ा भारत11 अगस्त 1966 आपको अजीम प्रेमजी के पास एक फोन आता है कि उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस लौटना पड़ा। वे केवल 21 साल के थे तब परिवार और कारोबार की जिम्मेदारी उनके कांधों पर आ गई।
पिता की मौत के बाद बिजनेस में नुकसान पिता की मौत के बाद उनका कारोबार नुकसान में चला गया। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने हार नहीं मानी और बिजनेस का विस्तार किया। उन्होंने तेल के साथ भी साबुन और अन्य प्रोडक्ट का बिजनेस भी शुरू किया।
कैसे शुरू हुई WIPRO अपने पिता की कंपनी वेस्टर्न इंडिया प्रोडक्ट्स लिमिटेड के नाम को ही छोटा करके विप्रो कर दिया गया। उन्होंने इसके बाद बिजनेस का विस्तार किया। वे तब वे समझ चुके थे कि आने वाला समय आईटी का है इसलिए उन्होंने आईटी कारोबार कि भी शुरुआत की।
सफलता के गाढ़े झंडे विप्रो के आईटी बिजनेस की शुरुआत के बाद कुछ ही सालों में बिजनेस ने सफलता हासिल कर ली। साल 1970 में ही कंपनी का रेवेन्यू 7.2 करोड़ रुपये हो गया था। उस समय आईबीएम जैसी कई बड़ी कम्पनियां थी, लेकिन फिर भी विप्रो अपनी जगह बनने में सफल रही।
मिनी-कंप्यूटर और हार्डवेयर निर्माणकंपनी ने साल 1980 में अपने हार्डवेयर निर्माण और मिनी कंप्यूटर की शरुआत की। भारत में आईटी की नींव पड़ी रही थी। इसका फायदा कंपनी को खूब हुआ। इसके बाद कंपनी लगातार सफलता के कीर्तिमान हासिल करती रही।
पद्म विभूषण से सम्मानित अजीम प्रेमजी को साल 2011 में देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। वह विप्रो से रिटायर हो चुके हैं और उनकी जगह उनके बेटे रिशद प्रेमजी और तारीक प्रेमजी कंपनी संभाल रहे हैं। कंपनी में 2 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और इसका मार्केट कैप 2.25 लाख करोड़ से भी ज्यादा है।
परोपकार में अव्वल
अजीम प्रेमजी का नाम न केवल बिज़नस जगत में मशहूर है बल्कि वे बड़े दानदाताओं में भी शामिल है। उन्होंने 2.2 बिलियन डॉलर की संपत्ति दान देने का ऐलान किया है। अजीम प्रेमजी ने मुश्किल दौर में भी हार ना मानकर यह साबित कर दिया की बुलंद इरादे और लगन से सफलता हासिल की जा सकती है।
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