श्रीराम की दिवाली की कथा
Diwali Katha: कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 20 अक्टूबर को यह पर्व पूरे देश में मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी दिन प्रभु राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। दिवाली के अवसर पर सरयू नदी पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अयोध्या में पहली दिवाली कैसे मनाई गई थी? आइए जानते हैं त्रेता युग में अयोध्या की पहली दिवाली की कहानी।
रामायण के अनुसार, रावण का वध करने के बाद प्रभु राम ने विभीषण को लंका का राज सौंपा। लेकिन 14 वर्षों का वनवास समाप्त होने में कुछ समय शेष था। जब प्रभु राम लौटने लगे, तो उन्होंने उन सभी लोगों से मुलाकात की जिन्होंने उनकी सहायता की थी। इसके बाद, वे प्रयागराज में ऋषि भरद्वाज के आश्रम पहुंचे, जहां हनुमान जी, लक्ष्मण और माता सीता उनके साथ थे। वहां से हनुमान जी को भरत के पास भेजा गया।
हनुमान जी भरत के पास पहुंचे
प्रभु राम ने हनुमान जी से कहा कि वे भरत को सूचित करें कि वे जल्द ही अयोध्या पहुंचेंगे। राम को चिंता थी कि यदि भरत को समय पर सूचना नहीं मिली, तो वह आत्मदाह कर सकते हैं। हनुमान जी ने अयोध्या की ओर प्रस्थान किया और सबसे पहले नंदीग्राम में भरत के पास पहुंचे। जब हनुमान जी वहां पहुंचे, तो भरत सो रहे थे। उन्होंने भरत को जगाया और प्रभु राम के आगमन की सूचना दी।
प्रकृति खिल उठी और सरयू अविरल बहने लगी
प्रभु राम के अयोध्या पहुंचने की खबर सुनकर भरत खुशी से झूम उठे और उन्होंने अयोध्यावासियों को बताया कि प्रभु राम आने वाले हैं। जैसे ही अयोध्यावासियों ने यह सुना, उनके चेहरे खिल उठे। श्री राम के आगमन की सूचना से वहां की प्रकृति भी खिल उठी और सूखी सरयू नदी फिर से बहने लगी। इसका वर्णन रामायण के उत्तरकांड में मिलता है।
जब प्रभु राम अयोध्या पहुंचे, तो वहां के निवासियों ने दीपों से पूरे शहर को सजाया। देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। प्रभु ने सभी को गले लगाया और अयोध्या में खुशियों की बहार लौट आई।
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