New Delhi, 22 अक्टूबर . जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र लोकतंत्र पर एक बार फिर खतरा मंडराया है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी-जेएनयू) और एबीवीपी के नेतृत्व वाली जेएनयूएसयू ने विश्वविद्यालय प्रशासन और शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) के पक्षपातपूर्ण और तर्कहीन निर्णय के खिलाफ साबरमती ढाबा परिसर में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया.
यह निर्णय जेएनयूएसयू संविधान और छात्र लोकतंत्र के मूल ढांचे के खिलाफ माना जा रहा है. प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए, जिन्होंने जीआरसी के मनमाने निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की. एबीवीपी-जेएनयू ने आरोप लगाया कि जीआरसी ने उनके द्वारा पेश किए गए वीडियो सबूत, लिखित गवाहियों और समयबद्ध प्रमाणों को पूरी तरह नजरअंदाज किया.
जीआरसी ने स्कूल ऑफ सोशल साइंस (एसएसएस) और स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लेक्चर, और कल्चरल स्टडीज में इलेक्शन कमिटी (ईसी) की नियुक्तियों को वैध ठहराया, जबकि स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईएस) में ईसी को अवैध घोषित किया. एबीवीपी ने इसे विरोधाभासी और एकतरफा निर्णय करार देते हुए कहा कि जिन स्कूलों में सबसे ज्यादा धांधली हुई, उन्हें ही वैध ठहराया गया.
एबीवीपी ने पहले ही स्पष्ट किया था कि इनमें ईसी नियुक्तियां अलोकतांत्रिक थीं, बिना वोटिंग, हेडकाउंट या छात्र सहमति के. कई छात्रों को सभागार में प्रवेश से रोका गया, और कुछ ईसी सदस्य तो मौजूद भी नहीं थे.
एबीवीपी-जेएनयू अध्यक्ष मयंक पंचाल ने कहा, “जीआरसी का निर्णय Political दबाव में लिया गया है. जहां नियमों की खुली अवहेलना हुई, वहां आंखें मूंद ली गईं. यह केवल ईसी नियुक्तियों का मामला नहीं, बल्कि जेएनयू के लोकतांत्रिक ढांचे को खोखला करने का प्रयास है. हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे.”
एबीवीपी-जेएनयू मंत्री प्रवीण पीयूष ने कहा, “हमने ठोस सबूत पेश किए, लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया गया. लोकतंत्र की बात करने वाले लोग अब मनमानी से चुनाव प्रक्रिया को नियंत्रित कर रहे हैं. एबीवीपी छात्र समुदाय के साथ खड़ी है.”
संयुक्त सचिव वैभव मीणा ने कहा, “जीआरसी ने बिना क्वोरम और सहमति के ईसी नियुक्तियों को वैध ठहराया, जो लोकतंत्र की हत्या है. हम कुलपति से हस्तक्षेप और निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं.”
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एससीएच/डीकेपी
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