नई दिल्ली: चीन और कनाडा के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध से भारत के लिए एक बड़ा मौका आया है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार भारत अब चीन को सरसों की खली (Rapeseed Meal) का निर्यात कर सकता है। इससे भारत को करीब 1000 करोड़ रुपये का फायदा हो सकता है। सरसों की खली, सरसों का तेल निकालने के बाद बचने वाला पदार्थ है। पिछले कुछ हफ्तों से चीन को इसका निर्यात तेजी से बढ़ा है।तेल बनाने वाली कंपनियों ने सरकार से गुजारिश की है कि वे चीन से बात करें। वे चाहती हैं कि चीन, भारतीय सरसों की खली पर लगाई गई कुछ सख्त शर्तों को हटा दे। ये शर्तें करीब दस साल पहले लगाई गई थीं।निर्यात बढ़ने से भारत में सरसों के दामों को सहारा मिलेगा। अभी सरसों के दाम कम हैं। इससे किसानों को भी फायदा होगा। चीन ने कनाडा से आने वाली सरसों खली और कैनोला ऑइल पर 100% ड्यूटी लगा दी है। यह कार्रवाई चीन ने कनाडा की ओर से चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) पर लगाए गए टैक्स के जवाब में की है। वाणिज्य मंत्रालय को लिखा पत्रउद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) ने वाणिज्य मंत्रालय को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कहा है, 'चीन को भारतीय सरसों की खली निर्यात करने का एक अवसर आया है। भारत के पास सरसों की खली की अच्छी मात्रा है और वह लगभग 1000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आधा मिलियन टन निर्यात कर सकता है।' यानी भारत के पास मौका है कि वह चीन को सरसों की खली बेचकर अच्छा मुनाफा कमाए। अभी कितना निर्यात?साल 2011 तक भारत चीन को लगभग 3-4 लाख टन सरसों की खली का निर्यात करता था। लेकिन Malachite Green नामक एक हानिकारक पदार्थ की वजह से इसे रोक दिया गया था। हालांकि बाद में चीन ने कुछ सख्त शर्तों के साथ इसके आयात को फिर से शुरू करने की अनुमति दी।SEA के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने बताया कि केवल पांच कंपनियां ही उन सख्त शर्तों को पूरा कर पाईं, जिनमें से वर्तमान में केवल दो कंपनियां ही वास्तव में चीन को सरसों की खली का निर्यात कर रही हैं। मतलब, शर्तें इतनी कठिन हैं कि कुछ ही कंपनियां निर्यात कर पा रही हैं। भारत के पास कैसे आया मौका?चीन में सरसों की खली की बहुत खपत है। वह इसे ज्यादातर कनाडा और यूरोपीय संघ (EU) से खरीदता है। कनाडा पर चीन के 100% टैरिफ और यूरोपीय संघ में कमी के कारण, दुनिया भर में इसकी कीमतें बढ़ गई हैं।SEA ने अपने पत्र में कहा है कि मौजूदा आपूर्ति की कमी और बढ़ती कीमतों को देखते हुए भारत के पास चीनी बाजार में अपनी खोई हुई हिस्सेदारी को फिर से हासिल करने का एक नया अवसर है। अभी भारतीय सरसों की खली की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से लगभग 35% कम है। इसलिए, चीन के लिए यह फायदे का सौदा हो सकता है।
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