नई दिल्ली: अमेरिका और चीन के बीच महीनों से चल रही टैरिफ (आयात शुल्क) की जंग में एक बड़ी सफलता मिली है। यह टैरिफ वॉर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ के कारण शुरू हुई था। ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ टैरिफ कम करने पर सहमति जताई है। इसके बदले में चीन अवैध फेंटानिल (एक नशीला पदार्थ) के व्यापार पर नकेल कसेगा, अमेरिका से सोयाबीन खरीदना फिर से शुरू करेगा और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (rare earths) का निर्यात जारी रखेगा।
ट्रंप और शी जिनपिंग की यह मुलाकात दक्षिण कोरिया के शहर बुसान में हुई थी। यह 2019 के बाद उनकी पहली आमने-सामने की बातचीत थी। अमेरिका ने चीन द्वारा फेंटानिल बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की बिक्री पर इस साल की शुरुआत में लगाए गए 20% टैरिफ को घटाकर 10% करने पर सहमति जताई है। इससे चीन पर कुल संयुक्त टैरिफ दर 57% से घटकर 47% हो जाएगी। इस मुलाकात के बाद अब नजर भारत और अमेरिका के बीच होने वाली ट्रेड डील पर टिक गई हैं।
टेबल पर बनी बातट्रंप-शी की इस मुलाकात ने दोनों देशों के बीच एक ट्रेड डील का रास्ता खोल दिया है। इसने यह भी दिखाया है कि टैरिफ के जरिए दूसरे देशों को व्यापार समझौते के लिए मजबूर करने की ट्रंप की रणनीति उतने अच्छे नतीजे नहीं दे पाई है, जितने की उम्मीद थी। टेबल पर हुई यह मुलाकात बताती है कि व्यापारिक समाधान छोटे-छोटे वार्ताओं से ही निकलेगा। व्यापार समझौता अभी भी समय ले सकता है, क्योंकि चीन ने दिखा दिया है कि उसे डराकर किसी समझौते के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
भारत के साथ डील का क्या सीन?ट्रंप की टैरिफ रणनीति भारत के साथ भी वैसी काम नहीं आई है, जैसी वे चाहते थे। भारत भी भारी टैरिफ और प्रतिबंधों की धमकी से किसी समझौते के लिए जल्दबाजी करने को तैयार नहीं है।
बुधवार को दक्षिण कोरिया में ट्रंप ने घोषणा की कि भारत और अमेरिका एक व्यापार समझौते के करीब हैं। इससे पहले भारतीय मीडिया में भी अधिकारियों के हवाले से ऐसी खबरें थीं कि भारत अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता अंतिम रूप देने के करीब है, और दोनों पक्ष ज्यादातर मुद्दों पर सहमत होने वाले हैं। ट्रंप ने कहा कि भारत के साथ व्यापार समझौता जल्द ही होने वाला है।
क्या दबाव में आएगा भारत?भारत किसी समझौते के लिए दबाव में आने से कतरा रहा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत जल्दबाजी में या 'सिर पर बंदूक रखकर' ट्रेड डील नहीं करता है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली व्यापार समझौतों को आपसी विश्वास पर आधारित दीर्घकालिक साझेदारी के रूप में देखती है। उन्होंने जर्मनी में बर्लिन डायलॉग में कहा, 'हम यूरोपीय संघ के साथ सक्रिय बातचीत में हैं। हम अमेरिका से बात कर रहे हैं, लेकिन हम जल्दबाजी में समझौते नहीं करते और न ही हम समय-सीमा या 'सिर पर बंदूक रखकर' समझौते करते हैं।'
गोयल अमेरिका द्वारा रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर लगाए गए प्रतिबंधों से नाखुश दिखे। उन्होंने कहा कि किसी देश से उत्पाद खरीदने का फैसला पूरी दुनिया को मिलकर लेना होगा। उन्होंने कहा, 'मैं आज के अखबार में पढ़ रहा था, जर्मनी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट मांग रहा है... यूनाइटेड किंगडम ने पहले ही अमेरिका से तेल खरीदने के लिए या तो व्यवस्था कर ली है या शायद छूट प्राप्त कर ली है... तो फिर भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?'
अमेरिका के साथ बातचीत जारीभारत और अमेरिका ने मार्च में प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू की थी, लेकिन पांच दौर की बातचीत के बाद अमेरिका की भारतीय कृषि और डेयरी बाजारों तक पहुंच के एक प्रमुख मुद्दे पर गतिरोध आ गया था। भारत ने सांस्कृतिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए (विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) और अमेरिकी डेयरी उत्पादन में पशु-आधारित फीड के उपयोग से संबंधित) इन संवेदनशील क्षेत्रों को खोलने से इनकार कर दिया। इसके बाद ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ की घोषणा की, जिसमें रूसी तेल खरीदने पर 25% द्वितीयक टैरिफ भी शामिल था।
क्या है भारत का प्लान?व्यापार वार्ता के माध्यम से भारत का संतुलन और उसका शांत संकल्प अक्सर अमेरिका को परेशान करता रहा है, जैसा कि ट्रंप और उनके कुछ अधिकारियों की कठोर टिप्पणियों में दिखाई देता है। चीन भारी टैरिफ के बावजूद किसी समझौते के लिए जल्दबाजी करने को तैयार नहीं है क्योंकि उसके पास अमेरिका को दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति और उसके सोयाबीन की खरीद जैसे कई शक्तिशाली कार्ड हैं। दूसरी ओर, भारत के पास ऐसे शक्तिशाली कार्ड नहीं हैं, लेकिन उसने केवल एक निष्पक्ष और न्यायसंगत समझौते पर पहुंचने के लिए एक सिद्धांतवादी रुख अपनाया है और अपना संतुलन खोए बिना टैरिफ के प्रभाव को मात देने की कोशिश की है।
15% रह जाएगा टैरिफ!टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक ट्रंप ने संकेत दिया कि दोनों देशों के व्यापार प्रतिनिधियों द्वारा कथित तौर पर अंतिम रूप दिए गए प्रारंभिक समझौते को उनकी मंजूरी मिल गई है। इस प्रस्तावित समझौते से भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ 50% से घटकर 15% होने की उम्मीद है। इस व्यवस्था के तहत, भारत रूस से तेल का आयात कम करेगा और अमेरिका से ऊर्जा की खरीद बढ़ाएगा।
इसके अलावा, भारत अपनी बढ़ती बायो-फ्यूल (जैव ईंधन) पहल के लिए अमेरिकी मक्का खरीदने की योजना बना रहा है। इस पहल में इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है। साथ ही, भारत कुछ सैन्य उपकरण भी अमेरिका से खरीदेगा, जिनकी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।
ट्रंप और शी जिनपिंग की यह मुलाकात दक्षिण कोरिया के शहर बुसान में हुई थी। यह 2019 के बाद उनकी पहली आमने-सामने की बातचीत थी। अमेरिका ने चीन द्वारा फेंटानिल बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की बिक्री पर इस साल की शुरुआत में लगाए गए 20% टैरिफ को घटाकर 10% करने पर सहमति जताई है। इससे चीन पर कुल संयुक्त टैरिफ दर 57% से घटकर 47% हो जाएगी। इस मुलाकात के बाद अब नजर भारत और अमेरिका के बीच होने वाली ट्रेड डील पर टिक गई हैं।
टेबल पर बनी बातट्रंप-शी की इस मुलाकात ने दोनों देशों के बीच एक ट्रेड डील का रास्ता खोल दिया है। इसने यह भी दिखाया है कि टैरिफ के जरिए दूसरे देशों को व्यापार समझौते के लिए मजबूर करने की ट्रंप की रणनीति उतने अच्छे नतीजे नहीं दे पाई है, जितने की उम्मीद थी। टेबल पर हुई यह मुलाकात बताती है कि व्यापारिक समाधान छोटे-छोटे वार्ताओं से ही निकलेगा। व्यापार समझौता अभी भी समय ले सकता है, क्योंकि चीन ने दिखा दिया है कि उसे डराकर किसी समझौते के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
भारत के साथ डील का क्या सीन?ट्रंप की टैरिफ रणनीति भारत के साथ भी वैसी काम नहीं आई है, जैसी वे चाहते थे। भारत भी भारी टैरिफ और प्रतिबंधों की धमकी से किसी समझौते के लिए जल्दबाजी करने को तैयार नहीं है।
बुधवार को दक्षिण कोरिया में ट्रंप ने घोषणा की कि भारत और अमेरिका एक व्यापार समझौते के करीब हैं। इससे पहले भारतीय मीडिया में भी अधिकारियों के हवाले से ऐसी खबरें थीं कि भारत अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता अंतिम रूप देने के करीब है, और दोनों पक्ष ज्यादातर मुद्दों पर सहमत होने वाले हैं। ट्रंप ने कहा कि भारत के साथ व्यापार समझौता जल्द ही होने वाला है।
क्या दबाव में आएगा भारत?भारत किसी समझौते के लिए दबाव में आने से कतरा रहा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारत जल्दबाजी में या 'सिर पर बंदूक रखकर' ट्रेड डील नहीं करता है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली व्यापार समझौतों को आपसी विश्वास पर आधारित दीर्घकालिक साझेदारी के रूप में देखती है। उन्होंने जर्मनी में बर्लिन डायलॉग में कहा, 'हम यूरोपीय संघ के साथ सक्रिय बातचीत में हैं। हम अमेरिका से बात कर रहे हैं, लेकिन हम जल्दबाजी में समझौते नहीं करते और न ही हम समय-सीमा या 'सिर पर बंदूक रखकर' समझौते करते हैं।'
गोयल अमेरिका द्वारा रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर लगाए गए प्रतिबंधों से नाखुश दिखे। उन्होंने कहा कि किसी देश से उत्पाद खरीदने का फैसला पूरी दुनिया को मिलकर लेना होगा। उन्होंने कहा, 'मैं आज के अखबार में पढ़ रहा था, जर्मनी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट मांग रहा है... यूनाइटेड किंगडम ने पहले ही अमेरिका से तेल खरीदने के लिए या तो व्यवस्था कर ली है या शायद छूट प्राप्त कर ली है... तो फिर भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?'
अमेरिका के साथ बातचीत जारीभारत और अमेरिका ने मार्च में प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू की थी, लेकिन पांच दौर की बातचीत के बाद अमेरिका की भारतीय कृषि और डेयरी बाजारों तक पहुंच के एक प्रमुख मुद्दे पर गतिरोध आ गया था। भारत ने सांस्कृतिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए (विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) और अमेरिकी डेयरी उत्पादन में पशु-आधारित फीड के उपयोग से संबंधित) इन संवेदनशील क्षेत्रों को खोलने से इनकार कर दिया। इसके बाद ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ की घोषणा की, जिसमें रूसी तेल खरीदने पर 25% द्वितीयक टैरिफ भी शामिल था।
क्या है भारत का प्लान?व्यापार वार्ता के माध्यम से भारत का संतुलन और उसका शांत संकल्प अक्सर अमेरिका को परेशान करता रहा है, जैसा कि ट्रंप और उनके कुछ अधिकारियों की कठोर टिप्पणियों में दिखाई देता है। चीन भारी टैरिफ के बावजूद किसी समझौते के लिए जल्दबाजी करने को तैयार नहीं है क्योंकि उसके पास अमेरिका को दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति और उसके सोयाबीन की खरीद जैसे कई शक्तिशाली कार्ड हैं। दूसरी ओर, भारत के पास ऐसे शक्तिशाली कार्ड नहीं हैं, लेकिन उसने केवल एक निष्पक्ष और न्यायसंगत समझौते पर पहुंचने के लिए एक सिद्धांतवादी रुख अपनाया है और अपना संतुलन खोए बिना टैरिफ के प्रभाव को मात देने की कोशिश की है।
15% रह जाएगा टैरिफ!टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक ट्रंप ने संकेत दिया कि दोनों देशों के व्यापार प्रतिनिधियों द्वारा कथित तौर पर अंतिम रूप दिए गए प्रारंभिक समझौते को उनकी मंजूरी मिल गई है। इस प्रस्तावित समझौते से भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ 50% से घटकर 15% होने की उम्मीद है। इस व्यवस्था के तहत, भारत रूस से तेल का आयात कम करेगा और अमेरिका से ऊर्जा की खरीद बढ़ाएगा।
इसके अलावा, भारत अपनी बढ़ती बायो-फ्यूल (जैव ईंधन) पहल के लिए अमेरिकी मक्का खरीदने की योजना बना रहा है। इस पहल में इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है। साथ ही, भारत कुछ सैन्य उपकरण भी अमेरिका से खरीदेगा, जिनकी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।
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