राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित विजय स्तम्भ ना सिर्फ स्थापत्य का एक अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह वीरता, बलिदान और शौर्य की एक ऐतिहासिक गाथा भी समेटे हुए है। लेकिन इस गौरवशाली प्रतीक के पीछे छिपे कुछ ऐसे रहस्य भी हैं जो लोगों की रूह तक कंपा देते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो इस 9 मंज़िला स्तम्भ के हर तल पर ऐसी आत्माएं मौजूद हैं जो आज भी अपने अधूरे बदले की आग में जल रही हैं।
इतिहास के पन्नों में दर्ज वीरता… या कोई अधूरी कहानी?
विजय स्तम्भ का निर्माण 1448 में महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर जीत के उपलक्ष्य में करवाया था। करीब 37.19 मीटर ऊंचा यह स्तम्भ हिंदू वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाता है। इसमें कुल 9 मंज़िलें हैं, और करीब 157 संकरी सीढ़ियों से इसे पार किया जा सकता है।लेकिन जितना गौरव इस स्मारक में नजर आता है, उतनी ही गहराई से इसमें पीड़ा और रहस्य भी छिपा है। स्थानीय गाइड्स, पुरानी लोककथाएं और कभी-कभी खुद पर्यटक भी दावा करते हैं कि रात के अंधेरे में इस स्तम्भ के अंदर से अजीब सी फुसफुसाहटें, तलवारों के टकराने की आवाज़ें और स्त्रियों की करुण चीखें सुनाई देती हैं।
आत्माएं जो करती हैं पहरेदारी?
कई वर्षों से विजय स्तम्भ के आसपास काम करने वाले कर्मचारियों का मानना है कि इसके ऊपरी तल पर रुकना रात में असंभव हो जाता है। उन्होंने बताया कि जैसे ही सूर्यास्त होता है, स्तम्भ के भीतर का वातावरण बदल जाता है। कभी घुंघरुओं की आवाज, कभी किसी के चलने की आहट तो कभी अचानक सी हवा की सिहरन – ये सब कुछ आम बात हो गई है।एक स्थानीय गार्ड की माने तो एक बार एक विदेशी टूरिस्ट जो छठी मंज़िल तक चढ़ गया था, उसने अचानक भागते हुए नीचे आकर कहा – "मैंने किसी को ऊपर खड़े हुए देखा, मगर वो कोई इंसान नहीं था!" इसके बाद से ही वहां रात में किसी को चढ़ने की अनुमति नहीं दी जाती।
कौन हैं ये आत्माएं?
इतिहासकारों का मानना है कि चित्तौड़गढ़ की पृष्ठभूमि में तीन प्रमुख जौहर की घटनाएं हुईं, जहां हजारों महिलाओं ने आत्मदाह किया ताकि वे आक्रांताओं के हाथों अपमानित न हों। इन घटनाओं के दौरान जिन योद्धाओं ने किले और विजय स्तम्भ की रक्षा करते हुए प्राण गंवाए, उनकी आत्माएं शायद आज भी स्तम्भ के अंदर अपने अधूरे युद्ध और अपनों की रक्षा ना कर पाने की पीड़ा लिए भटक रही हैं।कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह स्तम्भ केवल एक विजय का प्रतीक नहीं, बल्कि यह एक ऊर्जा केंद्र है, जहां वीर योद्धाओं की आत्माएं एक दूसरे जन्म या बदले की प्रतीक्षा में आज भी बसी हुई हैं।
क्यों कांप जाते हैं पर्यटक?
विजय स्तम्भ में कदम रखने वाले पर्यटक अक्सर रिपोर्ट करते हैं कि एक विशेष प्रकार की ऊर्जा महसूस होती है। यह नकारात्मक नहीं, लेकिन भारी होती है। कई लोगों को चक्कर आना, अचानक डर लगना या गहराई से कुछ ताकने का एहसास हुआ है।दिल्ली से आई एक टूरिस्ट ने बताया – "जब मैं सातवीं मंज़िल पर पहुंची, मुझे ऐसा लगा कि कोई पीछे खड़ा मुझे देख रहा है। जैसे कोई छाया मेरे बेहद करीब हो। लेकिन जब पलटी, तो वहां कुछ नहीं था।"
क्या है विज्ञान का मत?
पैरानॉर्मल शोधकर्ता मानते हैं कि ऐसी जगहों पर जहां इतिहास के कई गवाह मौजूद हैं, वहां पर कुछ प्रकार की ऊर्जा लंबे समय तक बनी रह सकती है। यह जरूरी नहीं कि हर अजीब अनुभव आत्मा का प्रमाण हो, परंतु जब बड़ी संख्या में लोग समान अनुभव साझा करें तो वहां कुछ तो असामान्य होता है।
प्रशासन की सतर्कता
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने भी इस स्मारक में पर्यटकों की आवाजाही को लेकर कुछ सख्त नियम लागू किए हैं। खासकर शाम ढलने के बाद किसी को भीतर नहीं जाने दिया जाता। कुछ हिस्सों में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं, लेकिन तकनीकी खराबी की वजह से कई बार वे भी बंद हो जाते हैं – ये भी खुद में एक रहस्य बन गया है।
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