देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक आईआईटी कानपुर में छात्रों की आत्महत्या के मामलों ने चिंता की लकीर खींच दी है। पिछले 22 महीनों में सात छात्र ने सुसाइड किया है, और हाल ही में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्र धीरज ने बीते बुधवार को फंदा लगाकर अपनी जान दे दी।
धीरज की मौत और उसके प्रभावधीरज की मौत ने कैंपस में गहरा शोक और सदमा पैदा कर दिया है। उसके दोस्त और परिवार दोनों इस घटना से हैरान हैं। धीरज की आत्महत्या यह सवाल खड़ा करती है कि IIT जैसे संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य और छात्रों की भावनात्मक देखभाल पर पर्याप्त ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा।
काउंसलिंग तंत्र की विफलताआईआईटी कानपुर का काउंसलिंग तंत्र इस बार भी असफल साबित हुआ। धीरज ने अपने मानसिक तनाव और परेशानियों को साझा करने की कोशिश की थी, लेकिन काउंसलिंग टीम उसके मन की बात को समझ नहीं पाई। विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण अव्यवस्थित और अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता है।
संस्थागत दबाव और मानसिक तनावआईआईटी के छात्रों पर शैक्षणिक और सामाजिक दबाव बहुत अधिक होता है। लगातार प्रतिस्पर्धा, परीक्षाओं और प्रोजेक्ट की मांगें छात्रों में तनाव और अकेलापन पैदा करती हैं। धीरज की आत्महत्या इस तथ्य को उजागर करती है कि प्रतिष्ठित संस्थान भी छात्रों की मानसिक भलाई की जिम्मेदारी में पीछे रह जाते हैं।
विशेषज्ञों की रायमनोवैज्ञानिक और शिक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि छात्र अक्सर तनाव, अवसाद और अकेलेपन के कारण मानसिक स्वास्थ्य संकट में आते हैं। काउंसलिंग तंत्र को केवल औपचारिक रूप से स्थापित करना पर्याप्त नहीं है; इसे प्रभावी, संवेदनशील और नियमित रूप से सक्रिय होना चाहिए।
प्रशासन और भविष्य की योजनाआईआईटी कानपुर प्रशासन ने मृत छात्रों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और छात्रों के लिए काउंसलिंग सुविधाओं को मजबूत करने की योजना बनाई है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि ये उपाय वास्तविक रूप में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाते हैं या नहीं।
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