जम्मू, 1 जून . वर्ष में सामान्यतः 24 एकादशी आती हैं, किंतु जब अधिकमास (मलमास) होता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है. श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने बताया कि इस व्रत में जल तक ग्रहण करना वर्जित होता है, इसीलिए इसे ‘निर्जला’ एकादशी कहते हैं. इसे पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है. पद्म पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन व्रत करने से सभी तीर्थों में स्नान के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है तथा यह एक व्रत पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य प्रदान करता है. यह व्रत स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं.
इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 06 जून शुक्रवार प्रातः 02:17 बजे प्रारंभ होकर 07 जून शनिवार प्रातः 04:49 बजे समाप्त होगी. चूंकि सूर्योदय व्यापिनी तिथि 06 जून को है, अतः स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) के अनुसार व्रत 06 जून शुक्रवार को रखा जाएगा. वहीं वैष्णव संप्रदाय के लोग 07 जून शनिवार को व्रत करें. जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है, वे 07 जून को व्रत रखें.
वे भक्तजन जो वैष्णव गुरुओं से दीक्षित हों, जिनके गले में कंठी (तुलसी माला) हो, तथा जिन्होंने माथे या गले पर चंदन, गोपी चंदन, श्रीखंड, त्रिपुण्ड्र, उर्ध्वपुंड्र या विष्णुचरण आदि के चिन्ह धारण किए हों, वही वैष्णव कहलाते हैं. इस दिन किया गया दान समस्त पापों का नाश करता है और परमपद की प्राप्ति कराता है. इस दिन ब्राह्मणों एवं ज़रूरतमंदों को छाता, खड़ाऊँ, आँवला, आम, खरबूजा, वस्त्र, जल से भरा कलश, पंखा, जौ, गाय आदि का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है. मिष्ठान्न व दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें.
लोग इस दिन मीठे जल की छबीलें लगाते हैं. गंगा स्नान, दान-पुण्य और सेवा का विशेष महत्व होता है.
/ राहुल शर्मा
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