-काशी में संघ प्रमुख ने निभाई धर्म-पिता की भूमिका, 125 जोड़ों को दिया आशीर्वाद
वाराणसी, 30 अप्रैल . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने बुधवार को धर्मनगरी काशी में आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव में भाग लेकर सामाजिक समरसता और संस्कारों का नायाब उदाहरण प्रस्तुत किया. इस अवसर पर उन्होंने एक वनवासी कन्या का कन्यादान कर धर्म-पिता की भूमिका निभाई और सामूहिक विवाह समारोह में 125 नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया.
डॉ भागवत ने महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा, विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो कुटुंबों और व्यापक रूप से समाज के निर्माण का आधार है. कुटुंब मकान की ईंट के समान होता है, और यह संस्कारों से ही मजबूत होता है. उन्होंने संस्कार को स्वभाव में बदलने का संदेश दिया.
संघ प्रमुख ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने कर्तव्यबोध को एक सामाजिक आयोजन में बदल दिया. उन्होंने कहा कि विवाह में तो बहुत खर्च होता है लेकिन समाज को कुछ नहीं मिलता है. उन्होंने कन्यादान में भागीदार बने शहर के विशिष्ट अभिभावकों से कहा कि वे वर-वधु से कम से कम वर्ष में एक-दो बार जरूर मिलें. उन्होंने कहा कि परिवार में मात्र पति-पत्नी और बच्चे का भाव नहीं रखना चाहिए. इससे परिवार, समाज पीछे रह जाता है. अपने को परिवार का अविभाज्य अंग मानकर कार्य करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मानव संस्कृति को अमरता प्रदान करने का जो नैसर्गिक संस्कार है, उस परिणय संस्कार का संयोग काशी में भगवान द्वारिकाधीश के समक्ष पौराणिक शंकुलधारा कुंड पर देखने को मिला.
इस अवसर पर डॉ भागवत ने सोनभद्र जिले की जोगीडीह निवासी वनवासी कन्या रजवंती का कन्यादान किया. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने उसके पांव पखारे और पिता की भांति कन्यादान का संकल्प लिया. रजवंती ने धर्म पिता डॉ मोहन भागवत के आर्शीवाद के साये में सोनभद्र रेणुकूट निवासी आदिवासी अमन के साथ परिणय-सूत्र में बंधकर जीवन की एक नई शुरुआत की.
इसके पहले संघ प्रमुख पारंपरिक वेशभूषा सफेद कुर्ता, पीली धोती और कंधे पर पीला गमछा लिए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे. बारातियों का स्वागत करते हुए उन्होंने सभी 125 वर-वधुओं को व्यक्तिगत रूप से आशीर्वाद दिया. द्वारिकाधीश मंदिर से चलकर घोड़ा-बग्घी और बैंड-बाजे के साथ निकली भव्य बारात का स्थानीय व्यापारियों और नागरिकों ने फूलों और जलपान से स्वागत किया.
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/ श्रीधर त्रिपाठी
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