इंदौर: मध्य प्रदेश के स्वच्छ शहर इंदौर में एक बार फिर नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। चंदन नगर इलाके में बिना अनुमति के सड़कों के नामकरण बोर्ड लगाने और उनके लिए लाखों रुपये के भुगतान का मामला सामने आया है। इस गड़बड़ी ने निगम के कामकाज को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
बिना मंजूरी बोर्ड और भुगतान का खेलचंदन नगर की गलियों में लगाए गए इन बोर्डों को वार्ड नंबर 2 की पार्षद फातमा रफीक खान ने बिना नगर निगम की मंजूरी के लगवाया। हैरानी की बात यह है कि इन बोर्डों के लिए निगम ने बिना एमआईसी (मेयर-इन-काउंसिल) की स्वीकृति के ही लाखों रुपये का भुगतान कर दिया। यह मामला अब तूल पकड़ चुका है और स्थानीय लोग इसे लेकर सवाल उठा रहे हैं।
तुरंत गठित हुई जांच समितिजैसे ही यह मामला सामने आया, निगमायुक्त शिवम वर्मा ने फौरन कार्रवाई करते हुए तीन सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी। इस समिति को पांच दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि यह पूरी तरह नियमों के खिलाफ है। उन्होंने प्रारंभिक तौर पर उपयंत्री और कार्यपालन यंत्री की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया। महापौर ने साफ कहा कि जांच में दोषी पाए जाने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
कौन करेगा जांच?जांच समिति में जनकार्य विभाग के अपर आयुक्त अभय राजनगांवकर, अधीक्षण यंत्री डीआर लोधी और उपयंत्री पराग अग्रवाल शामिल हैं। शुरुआती जांच में पता चला कि जोन-15, वार्ड-2 में लगाए गए इन बोर्डों के लिए यातायात विभाग के अधिकारियों के मौखिक निर्देशों का हवाला दिया गया। लेकिन दस्तावेजों की पड़ताल में सामने आया कि बिल सत्यापन और भुगतान में भी भारी अनियमितता हुई है।
रिकॉर्ड समय में हो गया भुगतानआम तौर पर ठेकेदारों को भुगतान के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है, लेकिन इस मामले में फाइलें चंद दिनों में तैयार हुईं और बिल पास करके भुगतान भी हो गया। लेखा शाखा की इस असामान्य तेजी ने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई?
पार्षद ने ठेकेदार से सीधे कराया कामविवाद तब और गहरा गया जब पता चला कि पार्षद फातमा रफीक खान ने बिना अधिकारियों की अनुमति के ठेकेदार से सीधे संपर्क करके ये बोर्ड लगवाए। महापौर ने कहा कि इस पहलू की भी गहन जांच होगी। उन्होंने साफ किया कि बिना अधिकारियों की जानकारी और मंजूरी के ऐसा कोई काम संभव ही नहीं है।
दो महीने पहले से थी शिकायतेंलगभग दो महीने पहले सकीना मंजिल, गौसिया रोड, ख्वाजा रोड और रजा गेट पर ये बोर्ड लगाए गए थे। उस समय भी महापौर और स्थानीय विधायक ने इस पर आपत्ति जताई थी। नियमों के मुताबिक, किसी भी गली या मोहल्ले का नामकरण बिना एमआईसी की मंजूरी के नहीं हो सकता। उस वक्त अधिकारियों ने जिम्मेदारी ठेकेदार पर डाल दी थी, लेकिन अब दस्तावेजों से साफ है कि बिल जोन स्तर पर सत्यापित हुए और भुगतान भी कर दिया गया। फिलहाल, इस मामले में अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।
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